मंगलवार को कीजिए मेहंदीपुर बालाजी के दर्शनऔर जानिए बाला मेहंदीपुर बालाजी का रहस्य और पौराणिक कथाएं।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर से जुड़ी कहानिया ये कि यहां तीन देवों की प्रधानता मानी जाती है—
श्री बालाजी महाराज जी
श्री प्रेतराज सरकार जी और
श्री कोतवाल (भैरव)।
यह देव यहां आज से लगभग 1000 वर्ष पहले प्रकट हुए थे। इनके प्रकट होने से लेकर अब तक बारह महंत इस स्थान पर सेवा-पूजा कर चुके हैं और अब तक इस स्थान पर दो महंत इस समय भी विद्यमान हैं।
शुरुआत के समय मेहंदीपुर धाम में घना जंगल हुआ करता था और यहां जंगली जानवरों का वास था। सुनसान होने के कारण यहां चोर-डाकुओं का भी डर था। ऐसे में आम आदमी की पहुंच इस जगह से काफी दूर थी।
पुरानी कथा के अनुसार यहां एक मंदिर के सबसे पुराने महंत के पूर्वजों को सपना आया और सपने में ही उठकर एक बड़ी विचित्र जगह पहुंच गए। उन्होंने देखा कि एक ओर से हजारों दीपक प्रज्वलित थे और हाथी-घोड़ों की आवाज के साथ एक बहुत बड़ी फौज चली आ रही है।
उस फौज ने बालाजी महाराज की मूर्त्ति की तीन प्रदक्षिणाएं की और उन्हें प्रणाम किया। उसके बाद वे जिस रास्ते से आए थे, उसी रास्ते से चले गए। महाराज ये सब लीला बहुत ही आश्चर्य के साथ देख रहे थे। उन्हें ये सब देखने के बाद डर लगा और वे वापस अपने गांव चले गए। घर जाकर उन्होंने इस लीला के बारे में बहुत सोचा, वहीं जैसे ही उनकी आंखें लगी तो उन्हें एक और सपना आया।
इस बार सपने में तीन मूर्त्तियां, मन्दिर और विशाल वैभव दिखाई पड़ा और उनके कानों में यह आवाज आयी – उठो, मेरी सेवा का भार ग्रहण करों। मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगा। यह बात कौन कह रहा था, कोई दिखाई नहीं पड़ा। महाराज ने एक बार भी इस पर ध्यान नहीं दिया तो खुद हनुमान जी महाराज ने इस बार स्वयं उन्हें दर्शन दिए और उन्हें पूजा करने का आदेश दिया।
दूसरे दिन महाराज ने आस-पास के लोगों को सारी बातें बताई। जैसे ही सपने के बताए अनुसार खुदाई की गई वहां से प्रतिमा निकल कर आ गई। कुछ लोगों ने वहां एक छोटे से मंदिर की स्थापना करवा दी और भोग की व्यवस्था भी करवा दी। ऐसा होने से वहां चमत्कार होने लगे। कुछ कपटी और दुष्ट लोगों ने इसे ढोंग माना। बालाजी महाराज की प्रतिमा/ विग्रह जहाँ से निकाली थी, वह मूर्ति फिर से वहीं लुप्त हो गई। इससे सभी लोगों ने शक्ति को माना और क्षमा मांगी। लोगों के क्षमा मांगने के बाद मूर्तियाँ दिखाई देने लगी।
रहस्य यह है कि महाराज की बायीं ओर छाती के नीचे से एक बारीक जलधारा निरन्तर बहती रहती है जो पर्याप्त चोला चढ़ जाने पर भी बंद नहीं होती। उस जल के छींटे भक्तों के लगते हैं और इसे बालाजी का आशीर्वाद माना जाता है।
राजा को नहीं हुआ यकीन, फ़िर अदृश्य हुए बालाजी,
मेहंदीपुर में राजा का राज्य था, बाबा ने राजा को ही राजा को पूरी घटना के बारे में अवगत करवाया। राजा को भी ये कोई कला लगी और राजा ने इस पर यकीन करने से मना कर दिया। इससे मूर्तियां वापिस अदृश्य होकर जमीन में चली गई। राजा ने उस जगह की खुदाई करवाई लेकिन मूर्तियां नहीं मिली। इसके बाद राजा ने इसे चमत्कार माना और बाबा से क्षमा मांगी और खुद को अज्ञानी मूर्ख बताया। इसके बाद मूर्तियाें ने वापिस दर्शन दिए।
राजा ने महाराज को पूजा का भार ग्रहण करने के आदेश दिए। इसके बाद राजा ने बालाजी महाराज का एक विशाल मन्दिर बनवाया। महंत गोसाई जी महाराज वृद्धा अवस्था तक बालाजी की सेवा की। बाद में उन्होंने बालाजी की आज्ञा से समाधि ले ली और बालाजी से अंतिम क्षण में प्रार्थना की , मेरा वंश ही आगे तक आपकी सेवा पूजा करें। मंदिर की स्थापना से अब तक महाराज का परिवार ही सेवा कर रहा है। 1000 वर्षों के काल से अब तक यहां 11 महंत सेवा दे चुके है।