वृहस्पतिवार को क्यों की जाती है वृहस्पति देव की पूजा , क्या फल मिलता है जाने
एक बार सेठ जब दूसरे देश व्यापार करने गया तो पीछे से बृहस्पतिदेव ने साधु-वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पतिदेव से बोली हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं। मैं यह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती।
बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है. अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुवांरी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग़-बगीचे का निर्माण कराओ, जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें, परन्तु साधु की इन बातों से रानी को ख़ुशी नहीं हुई. उसने कहा- मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं और जिसे संभालने में मेरा सारा समय नष्ट हो जाए।
तब साधु ने कहा- यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना. बृहस्पतिवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस मदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना. इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा. इतना कहकर साधु रुपी बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए।
साधु के कहे अनुसार करते हुए रानी को केवल तीन वृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई. भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा. तब एक दिन राजा रानी से बोला- हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं, क्योंकि यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं. इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता. ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया. वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता. इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा. इधर, राजा के परदेश जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी।
उधर, राजा परदेश में बहुत दुखी रहने लगा. वह प्रतिदिन जंगल से लकड़ी बीनकर लाता और उसे शहर में बेचकर अपने दुखी जीवन को बड़ी कठिनता से व्यतीत करता. एक दिन दुखी हो, अपनी पुरानी बातों को याद करके वह रोने लगा और उदास हो गया
उसी समय राजा के पास वृहस्पतिदेव साधु के वेष में आकर बोले, हे लकड़हारे. तुम इस सुनसान जंगल में किस चिंता में बैठे हो, मुझे बतलाओ
यह सुन राजा के नेत्रों में जल भर आया. साधु की वंदना कर राजा ने अपनी संपूर्ण कहानी सुना दी. महात्मा दयालु होते है. वे राजा से बोले, हे राजा तुम्हारी पत्नी ने वृहस्पतिदेव के प्रति अपराध किया था, जिसके कारण तुम्हारी यह दशा हुई. अब तुम चिन्ता मत करो भगवान तुम्हें पहले से अधिक धन देंगें. देखो, तुम्हारी पत्नी ने वृहस्पतिवार का व्रत प्रारम्भ कर दिया है।
अब तुम भी वृहस्पतिवार का व्रत करके चने की दाल व गुड़ जल के लोटे में डालकर केले का पूजन करो। फिर कथा कहो या सुनो। भगवान तुम्हारी सब कामनाओं को पूर्ण करेंगें. साधु की बात सुनकर राजा बोला, हे प्रभो।लकड़ी बेचकर तो इतना पैसा भई नहीं बचता, जिससे भोजन के उपरांत कुछ बचा सकूं। मैंने रात्रि में अपनी रानी को व्याकुल देखा है. मेरे पास कोई साधन नही, जिससे उसका समाचार जान सकूं. फिर मैं कौन सी कहानी कहूं, यह भी मुझको मालूम नहीं है।
साधु ने कहा, हे राजा। मन में वृहस्पति भगवान के पूजन-व्रत का निश्चय करो. वे स्वयं तुम्हारे लिये कोई राह बना देंगे. वृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियां लेकर शहर में जाना. तुम्हें रोज से दुगुना
धन मिलेगा जिससे तुम भलीभांति भोजन कर लोगे तथा वृहस्पतिदेव की पूजा का सामान भी आ जाएगा।